साम्राज्य
साम्राज्य
गीत
है विस्तार जहाँ सीमा का ,
पनपा है साम्राज्य वहीं !!
हैं दबंग जो रौब जमाते ,
मौन रहे कमजोर सदा !
अर्थतंत्र मजबूत नहीं जब ,
और ऋणों का बोझ लदा !
मदद उन्हें जो पहुंचाते हैं ,
वे उनके आराध्य कहीं !!
हित अपना जो साध खड़े हैं ,
वही मित्र हैं दंभ भरें !
साँसे लेते जो उधार की ,
जी जी कर वह रोज मरें !
अपने घर में जो उलझे हैं ,
रहते हैं वे त्याज्य यहीं !!
कब्ज़ा जो अधिकार समझते ,
सीमाओं को कब छोड़ें !
देश सुरक्षित तब हो कैसे ,
अन्तरघाती बन तोड़ें !
सुदृढ़ धरातल अगर दिया है ,
राज्य वही अविभाज्य यहीं !!
मातृभूमि या देश प्रथम हो ,
जीवन का यह लक्ष्य रखें !
हम चौकस तो राज्य सुरक्षित ,
कभी नहीं कमजोर दिखें !
सबल बनें तो रहे सुरक्षित ,
कायम तभी स्वराज्य यहीं !!