एक अठन्नी ज़िन्दगी
एक अठन्नी ज़िन्दगी
एक अठन्नी ज़िन्दगी,
बन गई हिरासत हमारी।
जब न सुना गया हमें,
और न सुनी गई कहानी हमारी।
आप लोग आ जाते हैं अक्सर
हम पर शोध करने।
ठीक इसी गाँव के चबूतरे पर
बैठक होती है हमारी।
थोड़ा आप जान लेते हैं,
और थोड़ा हम दर्द बयाँ कर देते हैं।
लेकिन ये रिश्ता भी,
समय तोड़ देता है।
कभी चर्चा करने के लिए
जो लोग आया करते थे।
अब वो सर्वे के लिए भी
नहीं आते क्योंकि
शायद अब कोई प्रयोजना कार्य शेष नहीं रहा।
हम उनके लिए केवल विषय थे
मगर वो हमारे लिए विचारक थे
तभी तो अपनी आपबीती कहने में
थोड़ा सुकून मिलता था,
लगता था मानो
कोई उस गाँव के चबूतरे पर
वापस हमारी कहानी सुनने आ रहा है।