बादल -सा मन
बादल -सा मन
है हुंकारता ये बादल-सा मन,
कभी भीतर की गर्जना किसी ने सुनी नहीं.
मुझमें मैं कहीं भी नहीं,
फिर भी होश में रहा नहीं.
दौड़ता चिंघाड़ता बहता चला गया,
बस रुकने की ज़िद की नहीं.
ये खुद से विरह की निशानी
मुझे धुंधली सी दिखाई क्यों दी ?