सत्ता और ताक़त का फरेब
सत्ता और ताक़त का फरेब
कोई देश बने बंधू , कोई बने दुश्मन अनाड़ी
कहीं मिले हाथ तो कहीं हुई बमबारी।
पिसा कौन सत्ता के आड़ में ?
सारी आम जानता पर सत्ता पड़ गई भारी।
राम बचाए अब जन-संकट से
क्योंकि मनुष्यों पर मनुष्य ही पड़ रहा है भारी।
क्या सोचते हैं: ताक़त कितनी नाकामयाब है ?
जो ताक़त के पीछे भागते हैं
वो कितने नाकामयाब हैं ?
इतनी नाकामयाब ज़िन्दगी को
लोग अधिकार समझ लेते हैं।
सत्ता का एक ही नियम है :
न नैतिक कोई समस्या
न अनैतिक कोई कृत्य
बस भजो ताक़त को
और करो सब मान्य-अमान्य सटीक।
