पोखर किनारे धूप में.. पीपल की छाँव में मुझको सुकून मिलता है बस अपने गाँव में। पोखर किनारे धूप में.. पीपल की छाँव में मुझको सुकून मिलता है बस अपने गाँव में।
समझना जरूरी है कीमत प्रकृति की, वक्त गुजर रहा है मुट्ठी में बंद रेत की तरह।। समझना जरूरी है कीमत प्रकृति की, वक्त गुजर रहा है मुट्ठी में बंद रेत की तरह।।
चाह कर भी कभी न तोड़ सके ऐसी बेड़ी हमारे पाँव में थी। चाह कर भी कभी न तोड़ सके ऐसी बेड़ी हमारे पाँव में थी।
जब बेटी से हो गयी गलती तब अक्ल ठिकाने आयी थी। जब बेटी से हो गयी गलती तब अक्ल ठिकाने आयी थी।
अनगिनत लोगो को मंज़िल तक पहुँचाती है कितने चायवालो का फेरीवालो का न जाने और कितने गरीबों क... अनगिनत लोगो को मंज़िल तक पहुँचाती है कितने चायवालो का फेरीवालो का न जाने...