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मेरा गाँव

मेरा गाँव

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पोखर किनारे धूप में.. पीपल की  छाँव में

मुझको सुकून मिलता है बस अपने गाँव में।

चौकी पलंग और वो दालान ख़ुशनुमा

सर्दी की धूप और वो मैदान ख़ुशनुमा।

वो नीम कौड़ियों की महक.. बेल का शरबत

वो लहलहाते बाग़ वो फूलों की नज़ाक़त

पागल दिवानी बादे-सबा बादलों के शोर

फ़ैलाए पंख नाच रहे हैं कहीँ पे मोर..

वो दिलनवाज़ शाम वो रौनक़ वो रागिनी

ढिबरी-ओ-लालटेन की मद्धम सी रौशनी।

इन्सानियत का दौर है ज़िन्दा है इल्तेफ़ात

हर शख्स कर रहा है यहाँ मुस्कुरा के बात।

जुगनू की रौशनी में नहाई है ज़िंदगी

गोया ख़ुशी के बज़्म में आई है ज़िंदगी।

सुनता रहा है तू जो फ़साना अभी भी है

काग़ज़ कि कश्तियों का ज़माना अभी भी है!

दिखता अगर नहीँ है तो चश्मा लगा के देख

ऐ शह्र..आ.. कभी तू मेरा गाँव आ के देख!


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