रात की नीरवता में सोच का विस्तृत आकाश। रात की नीरवता में सोच का विस्तृत आकाश।
नव छटा धरणी तल आ रही । अरुण कांति शुभा अति भा रही। नव छटा धरणी तल आ रही । अरुण कांति शुभा अति भा रही।
प्रभु को भी ग़ुरूर आया था इतनी सुंदर रचना बना के वो इतराया था.. प्रभु को भी ग़ुरूर आया था इतनी सुंदर रचना बना के वो इतराया था..
दवा काम ना है आज आई दुवा भी लगता है शरमाई। दवा काम ना है आज आई दुवा भी लगता है शरमाई।
ये फिजओ देखो आज मेरी डायरी के पन्ने भी बोल रहे। ये फिजओ देखो आज मेरी डायरी के पन्ने भी बोल रहे।
बीत गया एक और साल जैसे बीत जाती हैं रातें, फिर निकला नया सूरज फिर होंगी नई- नई बातें। बीत गया एक और साल जैसे बीत जाती हैं रातें, फिर निकला नया सूरज फिर होंगी नई- ...
किस्सों के भी तो कुछ किस्से होंगे, नए पुराने जमानों के कुछ हिस्से होंगे! किस्सों के भी तो कुछ किस्से होंगे, नए पुराने जमानों के कुछ हिस्से होंगे!
कच्चे धागों में बंधे पक्के रिश्ते कभी लड़ते झगड़ते तो कभी हँसते। कच्चे धागों में बंधे पक्के रिश्ते कभी लड़ते झगड़ते तो कभी हँसते।
तिरंगा हम सबकी शान है , पर कोई न रखता मान है , तिरंगा हम सबकी शान है , पर कोई न रखता मान है ,
इंसान अपने अकेलेपन से, निजात पाने के लिए मुहब्बत करता है। इंसान अपने अकेलेपन से, निजात पाने के लिए मुहब्बत करता है।
तुम अभिमन्यु नहीं थे ईश्वर जो मानव द्वारा बुने हुए व्यूह रचना में फंस जाते। तुम अभिमन्यु नहीं थे ईश्वर जो मानव द्वारा बुने हुए व्यूह रचना में फंस जाते...
हां,वह मेरी कविता है कभी मौत की गाथा सुनाती कभी वीभत्स नजारे दिखाती। हां,वह मेरी कविता है कभी मौत की गाथा सुनाती कभी वीभत्स नजारे दिखाती।
हिजाब ए दर्द ए दिलम आंचल ए सरसराहट कुछ नहीं। हिजाब ए दर्द ए दिलम आंचल ए सरसराहट कुछ नहीं।
मंजिल पर जाने से पहले, हो बस तुझसे एक मुलाकात... मंजिल पर जाने से पहले, हो बस तुझसे एक मुलाकात...
कभी टाइपराइटर पे उंगलियों को शान से दौड़ाया करते थे हम। कभी टाइपराइटर पे उंगलियों को शान से दौड़ाया करते थे हम।
अंदाज पुराना,जोश नया, ये अन्त नही प्रारंभ है। अंदाज पुराना,जोश नया, ये अन्त नही प्रारंभ है।
बार-बार यही तो होता आया है साथ मेरे, कभी बस जाता हूँ, कभी उजड़ जाता हूँ। बार-बार यही तो होता आया है साथ मेरे, कभी बस जाता हूँ, कभी उजड़ जाता हूँ।
कलकल नदियाँ बहती चली यूँ सागर की ओर, मंत्र-मुग्ध हरदम करे, मधुरम उसका यह शोर ! कलकल नदियाँ बहती चली यूँ सागर की ओर, मंत्र-मुग्ध हरदम करे, मधुरम उसका यह शोर...
ना हो कोई गरीब मुझसा ना ही जिम्मेदारियों का पहाड़ सा हो।।। ना हो कोई गरीब मुझसा ना ही जिम्मेदारियों का पहाड़ सा हो।।।
उदास देख नहीं सकता इसलिए रोने नहीं देता एक बार चैन की नींद सोने नहीं देता। उदास देख नहीं सकता इसलिए रोने नहीं देता एक बार चैन की नींद सोने नहीं देता।