मैं कौन हूँ?
मैं कौन हूँ?
ऐ मानव ऐ मानव
यह एक हृदय की खुली चिट्ठी है
न बन जा आज तू अंधकार में दानव
यह इस दिल की तुझसे विनती है |
ऐ मानव ऐ मानव
एक माँ ने तुझे जन्मा , एक बहन ने तुझे सुलाया
तो फिर आज क्यों तूने मुझे
बराबर न मानकर यों भुलाया ?
ऐ मानव ऐ मानव
अपनी प्रगति के नाम पर, पाने को यश
जिसने तुझे पाला, उसे अपने से छोटा मानकर
क्यों आज मुझी को बनाया विवश ?
ऐ मानव ऐ मानव
याद अब नहीं तुझे राखी का वह दिन
जब वादा किया था तूने, आंच न आने देगा मुझे
फिर आज तुझे अपनी कलाई क्यों सूनी न लगती राखी के बिन ?
ऐ मानव ऐ मानव
जिस कोख ने जन्म दिया था तुझको
आज उसका अपमान कर
क्यों दे रहा है पीड़ा मुझको ?
ऐ मानव ऐ मानव
न जाने कितनी बार तूने मुझे रोका
कहता था - तुम स्त्री हो, रहने दो
कैसे तूने मान लिया मुझे हवा का मामूली झोंका?
ऐ मानव ऐ मानव
मैं हर वह स्त्री हूँ,
माँ, नानी, बहन, सहेली
जिसकी अहमियत आज भूल गया है तू |
ऐ मानव ऐ मानव
मुझे तेरी छाया में नहीं छुपना
आगे बढ़कर उड़ान भरनी है
यों पल्लू के पीछे नहीं ढकना |
ऐ मानव ऐ मानव
माँ काली से कालिमा का सफर मैंने देखा है
क्योंकि तूने, सिर्फ तूने
मुझसे मेरा अस्तित्व चुराया है |
ऐ मानव ऐ मानव
रूप लिए द्रौपदी, सीता, गंगा का
बन सकती हूँ मैं चण्डालिनी
वाक़िफ़ तो तू इससे भी था |
ऐ मानव ऐ मानव
काश आज तू याद रखता
कि यदि संसार में मैं न होती
तो शायद तू जन्मा ही न होता |
ऐ मानव ऐ मानव
मैं अपने आप को बचा लूंगी
लेकिन तूने मेरी पहचान छीनी
आज मैं ही खुद से पूछने लगी - मैं कौन हूँ ?
