रेलगाड़ी
रेलगाड़ी
रेलगाड़ी को जब भी देखता हूँ
मैं भावुक हो जाता हूँ
वो तय ट्रैक पर चलती है
आती है और जाती है
पर न जाने कितने
अनगिनत लोगो को
मंज़िल तक पहुँचाती है
कितने चायवालो का
फेरीवालो का
न जाने और कितने
गरीबों का पेट पालती है
दूर गाँव में इंतज़ार करती
नमकीन आँखों से सजनी
का अपने साजन से
मेल कराती रेलगाड़ी
और न जाने इतने और
कितने सारे कहानी
अपने अंदर दबाये
आती जाती रहती रेलगाड़ी
हर एक स्टेशन पर
चढ़ते उतरते मुसाफ़िर अनजान लोगो के साथ
सुख दुःख बाँटते मुसाफ़िर
न तो किसी को किसी की जात से लेना
और न ही किसी की औकात से लेना
कितने अज़नबी को करीब लाते
अपना बनाते ये रेलगाड़ी
किसी को अपने रोज़गार से जोड़ेतो
किसी को अपने ससुराल से जोड़े
कहीं चल रहा ताश का खेल
तो कही बाँट रही मिठाई
हर एक डब्बे की बात निराली
मानो यही मन रही ईद और दिवाली
बच्चे बूढ़े और नौजवान सबको आपस में बांधे रेलगाड़ी
