शिद्दत
शिद्दत
ये जो ढीली शर्ट और जीन्स पहन के निकलते हो तुम
ये जो बगल में किताब और बास्ते में
कहानियां ले कर चलते हो तुम
ये जो सफ़ेद से बाल दिख जाते हैं कभी
ये जो गुमसुम से दिखाई पड़ते हो अभी
ये जो मोबाइल में झांकते रहते हो दिनभर
ये जो यारों को हसाते रहते हो अक्सर
ये जो अकेले रहने से डरते हो तुम
ये जो अतीत को याद करते हो तुम
ये जो सफ़ेद दीवारें हैं
ये जो शोर भरे सन्नाटे हैं
ये जो कलम की नोक पे हिचक की सियाही है
ये जो दबी दबी सी मुसकाम तुम्हारी है
तो क्या हुआ जो तुम्हारी कोई सुनता नहीं
क्या हुआ अगर कोई अपने जैसा लगता नहीं
तो क्या हुआ अगर सब रास्ते तल्ख़ ही मिले
और क्या हुआ जो तुझसे रहतें हैं गीले
मुसाफिर जान तू इतना, इनायत पायी जाती है
मयस्सर यु ही नहीं होती तबस्सुम कमाई जाती है
नूर तेरी भी आँखों में है दीखता मुझे अक्सर
तू जान तो खुद को, समुन्दर भी समाया है
कई तूफ़ान भी हैं अंदर, जिन्हे तू भूल आया है.
रहे ही नहीं होतीं अगर मुश्किल ए मेरे इश्क़
तो रहता यही गुमसुम तू खुशियों के भी आने पर
की साथी जान तू इतना की कीमत है जो हर पल की
हूँ न मिलती है साहिब फिर, आंसू भी बहाने पर।