मेरी ज़िन्दगी की सफ़र
मेरी ज़िन्दगी की सफ़र

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खड़े है आज़ ज़िंदगी के उस मुक़ाम पे
हाथ में ख़ुशी की छड़ी और
आँखों में गम के आंसू लिए
पीछे मुड़ के देखता हूँ
अपने ज़िंदगी की सफ़र
तो देखता हूँ थोड़ी ख़ुशी
तो ग़म है बेशुमार
ज़िंदगी की अब तक के सफर में
पाया तो पाया सिर्फ
अपने लिए बन ख़ुदग़र्ज़
खोया मैंने अपनों का साथ
जो रह गया है मेरे फ़ोन में
बनके कांटेक्ट नंबर मात्र
घर है, घरवाले भी है,
नहीं है तो केवल
उनके साथ,
चंद पल बिताने का समय
कोई लौटा दे मेरे ज़िन्दगी के बीते वो पल
लौट के, फिर हो जाऊँ अपनों के संग