दोस्त की शादी में मेरी हालत
दोस्त की शादी में मेरी हालत
हैं कुछ दिनों पहले की ये बात
एक दोस्त का फ़ोन आया था उस रात
बताई उसने खुश हो के ये बात
लेने वाला था वो फेरे सात
कैसे समझाता मैं उसके अपने मन की बात
शादी है शादी
नहीं है इसमें कोई खुश होने वाली बात
सोचा शादी की सच्चाई सुन के
हो न जाये उसका बुरा हाल
अच्छी खासी चल रही है लाइफ उसमें
हो न जाये कोई बवाल
बस यही सोचकर, चुप ही रहा
दबा लिया अपने ख्याल
बातें चली कुछ देर
जाने हमने एक दूसरे का हाल
शादी थी एक महीने के बाद
निमंत्रण दिया था उसने आने को प्रायागराज
जाना तो था ही, देने को उसको मुबारकबाद
मन खुश था की एक और दोस्त का
घर हो रहा था आबाद
डर भी था की कहीं अपनी ज़िन्दगी
कर न रहा हो बर्बाद बर्बादी के लिए
वैसे तरीके अनेक हैं।
पर विवाह सबसे सर्वश्रेष्ठ व नेक है।
खैर साहब सबको अपनी ज़िन्दगी है निभानी
लाइफ उसकी है, भला हमें क्यों हो परेशानी
दोस्ती भी थी हमारी कई साल पुरानी
जाना तो कैसे भी था, नहीं चलती कोई
आनाकानी
जाने की टिकट भी थी कटानी
बॉस से छुट्टी की बात भी थी मनानी
तो प्रायागराज जाने की तैयारी थी अब करनी
बस यही से शुरू होती है मेरी ये कहानी !
शादी में बनते है कई तरह के पकवान
और बारात तो होते है स्पेशल मेहमान
रात भर करवटे बदलते रहे
बस यही सोचते रहे
शादी में कुछ तो करना नहीं
बस खाओ पीयो और बढ़ाओ अपनी शान
घूमो और देखो वह के सारे दार्शिनीय स्थान
पर दिमाग में तो सिर्फ घूमता रहा
गुलाब जामुन, लड्डु , कुल्चा और बटर नान
आखिर सुबह हुई, जल्दी से उठा मैं सो कर
और निकल पड़ा रेलवे स्टेशन की
तरफ होकर तैयार
गर्मी छुट्टी होने वाली थी
गाड़ियों में भीड़ भी बढ़ने वाली थी
इसलिए रिजर्वेशन नहीं मिलने का
पहले से ही सत्ता रहा था डर
भागा भागा पहुंचा रिजर्वेशन काउंटर
देखा, वहां तो था लोगो का समंदर
आये थे वें साथ लेकर अपने लव लश्कर
गेट खुलते ही हुई धक्कम मुक्का
देखते ही रह गया मैं हक्का बक्का
मैं भी पीछे हटा नहीं, रहा डटा
इरादा कर लिया था एकदम पक्का
मौका मिलते ही लगाई छलांग
काबू में करने को इलाका
मैंने दाएँ से मारा चौक्का
तो बाएँ हाथ से मारा छक्का
सुपरमैन बन बढ़ता रहा एकदम
भागते भागते
और आखिर पहुँच ही गया काउंटर
पे सबसे आगे
सबसे पहले सीधा किया टेढ़ी हुई थी
जो अपनी गर्दन
पर्ची लिखा और आगे बढ़ा दिया
अपना आवेदन
किस्मत भी थी अपनी अच्छी
सीट मिली वो भी पक्की
टिकट हाथ में आते ही मन ही मन
मुस्कुराने लगा
शादी में मेहमान नवाज़ी का लुत्फ़
उठाने लगा
फिर समझाया अपने आप को
अभी तो महीना पड़ा है जाने को
खुशी ख़ुशी घर आया
और थी में क्या करना है उसका
प्लान बनाने लगा
सबसे पहले तो था बॉस को बताना
सप्ताह भर की छुट्टी भी तो था मनवाना
बॉस हमारे है एकदम भले तब तक
काम करो और छुट्टी न मांगो जब तक
खैर साहब , जाना तो था उनके सामने
अर्जी लेकर पहुंच गया मैं उनसे मिलने
पहले तो बॉस ने गुर्राया
मुझे अपनी आँखों से डराया
फिर अजीब सी हंसी उनके चेहरे पर छाया
मेरे पास आकर , कंधे पर हाथ रख समझाया
एक फाइल सात महीने है पड़ी
धूल मिट्टी भी है उसपे जमी
क्योंकि कोई नहीं कर पाया है वो काम
पर तुम्हारे लिए तो होगा ज़रा आसान
वो काम खत्म कर, ले लो छुट्टी जी भर
मेरा सिर चकराया, माजरा धीरे धीरे
समझ में आया
बॉस ने एक तीर से दो शिकार करना चाहा
मना करने से छुट्टी तो कतई नहीं मिलती
ऊपर से काम से बचने की दोष लग जाती
मेरे पास बचने का अब नहीं था कोई भी रास्ता
हाँ कहा जब की इस काम से मेरा न था कोई
वास्ता
फाइल लेकर पहुंच अपने मेज़ पर
फाइल देखते है अपना सर लिया पकड़
अंदर की हिसाब सब दिमाग़ के ऊपर से
जा रही थी
करना था क्या और कैसे कुछ समझ
नहीं आ रही थी
एकाउंट्स का किताब ज़िन्दगी में
पहली बार हाथ में उठाया
जंग समझकर, जितनी की तयारी में
सारा महीना निकल गया
फिर अचानक से हिसाब के एक गलती पर
जैसे ही पड़ी नज़र
सारा मामला गया सुलझ, अब तो
दिल में उठी ख़ुशी की लहर
हौसले जो धीरे धीरे टूट रहे थे,
उसको हवा मिल गयी
शादी में जाने की आस अब
एकदम बुलंद हो गयी
सफ़र का वो दिन भी आया ,
अटेची लेकर ट्रैन में घुसा
अंदर लोगो की बाढ़ देख सर फिर चकराया
एक दूसरों को ठेल रहे थे या धकेल
मचा हुआ था एकदम ठेलम ठेल
रिजर्वेशन डिब्बा लग रहा था जेल
घर जाना है सबको, करना पड़ा सबसे मेल
जैसे तैसे मैं प्रयागराज पहुंच ही गया
और शादी का स्थान भी मिल भी गया
आखिर महीने भर की मेहनत रंग लाई
शादी में पहुंच गया वीथ सूट बूट एंड टाई
मेरे दोस्त की ख़ुशियाँ यूं उमड़ रही थी
की सम्भले नहीं संभल रही थीं
पर अपना ध्यान तो बने हुए पकवान पे था
और भूख से भी बुरा हाल था
दोस्त से मिला , दिया शादी की बधाई
और फिर प्लेट लिए सीधा गया लेने रसमलाई
सारे पकवान का लिया मज़ा धीरे धीरे
और पेट पकड़ सीधा बिस्तर पे ऐसे गिरे
की दो दिन तक बिलकुल न उठ पाए
दिल और दिमाग पे पकवान ही छाया था
और पेट दर्द से जीना भी दुश्वर हो रहा था
दो दिन सिर्फ़ फल और पानी पे ज़िंदा था
वापस आने का भी समय निकट आ गया था
प्रयागराज घूम भी नहीं पाया, अफ़सोस था
जान बचाकर वापस घर पहुँचा, ख़ुशी थी