डर लगता है...
डर लगता है...
यूँ
ठोकरें खाते चली है जिंदगी ,
अब तो साफ रास्ते पर भी डर लगता है ,
गिर पड़े हम और आह निकली ,
संभलकर चलने में भी डर लगता है ...
चोट लगती रही हम रोते रहे ,
संभालने कोई आये गुहार लगाते रहे ,
कोई आया नहीं तकलीफ होती रही ,
खुद को जैसे तैसे मरहम लगाते रहे ,
अपने ही दिल को फूँक फूँककर समझाते रहे ,
अब हमदर्दी दिखाये कोई तो डर लगता है ...
जैसे भी है तेरी गलियों ने ,
रास्ता तो दिखाया है ,
दौड़ कर ना सही पाँव पाँव चल कर आया है ,
खुशियों की कही फुहार गिरे तो डर लगता है ,
पतझड़ में मौसम बदलते देख डर लगता है ...
सपनों के साये दिल में बसाये ,
हम चले भरी दोपहर में ,
छाव कही दिखे तो डर लगता है ,
यूँ ठोकरें खाते चली है जिंदगी ,
अब तो साफ रास्ते पर भी डर लगता है ...
