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Manisha Wandhare

Abstract

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Manisha Wandhare

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डर लगता है...

डर लगता है...

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यूँ

ठोकरें खाते चली है जिंदगी ,

अब तो साफ रास्ते पर भी डर लगता है ,

गिर पड़े हम और आह निकली ,

संभलकर चलने में भी डर लगता है ...

चोट लगती रही हम रोते रहे ,

संभालने कोई आये गुहार लगाते रहे ,

कोई आया नहीं तकलीफ होती रही ,

खुद को जैसे तैसे मरहम लगाते रहे ,

अपने ही दिल को फूँक फूँककर समझाते रहे ,


अब हमदर्दी दिखाये कोई तो डर लगता है ...

जैसे भी है तेरी गलियों ने ,

रास्ता तो दिखाया है ,

दौड़ कर ना सही पाँव पाँव चल कर आया है ,

खुशियों की कही फुहार गिरे तो डर लगता है ,

पतझड़ में मौसम बदलते देख डर लगता है ...

सपनों के साये दिल में बसाये ,

हम चले भरी दोपहर में ,

छाव कही दिखे तो डर लगता है ,

यूँ ठोकरें खाते चली है जिंदगी ,

अब तो साफ रास्ते पर भी डर लगता है ...



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