STORYMIRROR

Manisha Wandhare

Abstract

4  

Manisha Wandhare

Abstract

नींद नहीं हैं आँखों में...

नींद नहीं हैं आँखों में...

1 min
352

ख्वाब आसमान चूमते देखे है

पलकों को कहाँ अब आराम है

जो चाहा उसे हासिल करना

अब दिल ने ठान लिया है...

निंद नहीं हैं आँखों में या

ख्वाब सोने नहीं देते है

कुछ तो है दरमियान जो

सिसक बन के रात भर जगाते है...

जब चलती हूँ ख्वाबों की तरफ

दिल खुश उमंगें जगती है

भूख प्यास क्या निंद की भी

तब याद कहाँ आती है...

न जाने कितने दिन से

चैन की नींद नही है

पर उस एक दिन के लिए

हर दिन न्योछावर है ...

ऐ दिल जरा आराम सें लेना

वरना रह नही जाये सपना अधूरा

पर एक बात फिरसे सुनना

जो चला गया वो नही आयेगा दुबारा...

इसलिए कुछ भी करो बस

जीना मत भुलो जान लगा दो

गुजरते वक्त को ना भुलो

मंजिल का मजा रास्तों मेंही है

यही दास्ता कल भी थी आज भी हैं...



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract