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Shrishty mishra

Abstract

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Shrishty mishra

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बेटी

बेटी

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क्यू बेटियों की जिंदगी आसान नहीं होती,

परी होकर भी बाप की बाप की नहीं रहती।


आंगन में उगा पौधा मेरे साथ साथ बढ़ता रहा,

क्यू उस पेड़ की छाया मेरे हिस्से की नहीं लगती।


बचपन के खेल का मेरा सवाल अधूरा अब भी है,

बोलोना मां विदाई गुड़िया की ही क्यू होती।


पिता के पैसे से पढ़कर मैंने सीखा करना कमाई,

क्यू उनके हिस्से मेरी जरा सी कमाई नहीं होती।


पिता के नाम से छूटी पति के नाम में अटकी,

क्यू बेटियों की खुद की पहचान नहीं होती।


साइकिल मेरी है,मेरे कमरे में मत आना ऐसा कहने वाली,

लौट कर मायके वो इनपर हक नहीं रखती।


बताना मां सास डंडा मारेगी काम सीख ले,

ऐसा अक्सर बेटियां ही क्यूँ सुनती।

क्यूँ बेटियों की जिंदगी आसान नहीं होती।


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