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Shrishty mishra

Abstract

4.3  

Shrishty mishra

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तजुर्बा

तजुर्बा

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कौन कहता है तजुर्बा उम्र का गुलाम है,

जिसकी जितनी झुर्रिया उसको उतना ग्यान है।


बोझ उठाते उठाते उसके सारे अरमान खो गये,

हुआ यूं कि वक्त से पहले ही वो जवान हो गये।


खेलने की उम्र में वो कर्जदार हो गया,

जिम्मेदारीयां बढ़ी वो उनका फर्जदार हो गया।


जो मिला नहीं उसको उसे उस प्यार की कमी है,

झूठी सी मुस्कान के पिछे आज भी नमी है।


इक चिंगारी से मानो पुरी बगीया जल रही है,

कुछ इसी तरह से उसकी जिंदगी चल रही है।


ख्वाबों को खुदकी कभी पुरा किया नहीं,

छुट गया वो बचपन जो उसने जिया नहीं।


तजुर्बे की दाता तो ठोकर भी होती है,

उसको भी मिलती है जिसकी उम्र छोटी है।


दूसरो की खुशी में वो हुआ निलाम है,

कौन कहता है तजुर्बा उम्र का गुलाम है।


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