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Shrishty mishra

Abstract

4.7  

Shrishty mishra

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बचपन

बचपन

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एक वक़्त हुआ करता था जब बिना बात हंसते थे 

दौर जवानी का है साहब हर हिसाब खुशी का रखते हैं


एक बचपन है मेरा जिसमें कुछ कच्ची धुंधली यादें हैं

कुछ नन्ही आंखो के सपने कुछ मीठी सी फरियादे हैं


दौलत मेरी जाओ मुझसे ल जाओ ये शोहरत का खाजाना 

लौटा दो कोई मुझको मेरे बचपन का बीता जमाना


बहुत याद करते है उनको जो हर वक़्त साथ ने रहते थे

 खेले कूदे साथ सभी हर बात झगड़ पड़ते थे


वो बचपन था साहब जिसमें दुनिया की कोई रीत ना थी 

हर कोई होता था अपना मतभेदों वाली प्रीत ना थी


हर शाम गली में हम सबकी हलचल सी मच जाती थी

नए नए खेलो से गलियों में हलचल सी मच जाती थी


जिंदगी की जद्दोजहद में गुमनाम हो गए है

छूटा बचपन का साथ अब हम जवान हो रहे हैं।



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