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Kusum Joshi

Abstract

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Kusum Joshi

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ढूँढने अपने निकली हूँ मैं घर से

ढूँढने अपने निकली हूँ मैं घर से

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ढूँढने अपने निकली हूँ मैं घर से,

छोड़ी है माया आज आज़ाद हूँ सबसे,


भीड़ में तन्हा मैं अकेली हूँ,

रिश्तों में उलझी हूँ कोई पहेली हूँ,

किसकी कहूँ अपना सब जग पराया है,

मुझसे तो अनजाना मेरा अपना साया है,


राहें खत्म होंगी कभी चलते कदम कब से,

ढूँढने अपने निकली हूँ मैं घर से,


जीवन में सूनापन मगर मन में हलचल सी है,

ठहर गयी धरती पर मन में कम्पन सी है,

आँखों के आंसू मेरे होंठों से हँसते हैं,

ख़त्म नहीं होते ये कितने लंबे रस्ते हैं,


सब नाम से जाने मुझे गुमनाम मैं सबसे,

ढूँढने अपने निकली हूँ मैं घर से,


आँखें खुली जब से मेरी जिनको कहा अपना,

सब भ्रम था आँखों का झूठा कोई सपना,

रिश्ते ये जीवन में हैं सारी भ्रम की परछाई,

सारी उम्र खोकर के मैंने समझी सच्चाई,


अब तोड़ सारे द्वार मैं मिलने चली रब से,

ढूँढने अपने निकली हूँ मैं घर से


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