स्वर्णिम भारत
स्वर्णिम भारत
स्वर्णिम था इतिहास हमारा,
स्वर्णिम भारत के वासी,
गौरवशाली संस्कृति अपनी,
और विरासत वैभवशाली।
इसके वैभव का वर्णन,
बोल रही इसकी प्रतिमाएं,
भव्य शिखर, मंदिर और मंडप,
कैसी अनुपम दीपशिखाएं।
हर शहर हर नगर पुरातन,
एक अनूठी थाती है,
अद्वितीय कला शिखरों के,
वैभव पर इठलाती है।
ये वैभव भी वो वैभव है,
जिसने अगणित वार सहे,
आक्रांताओं के मनः द्वेष के,
कितने कटु परिणाम सहे,
फिर भी इस संस्कृति का वैभव,
इसके शिखरों में हंसता है,
ये भारत है भारत का वैभव,
प्रेमात्म रूप में बसता है।
ये वैभव खंडित कैसे होगा,
कुछ क्षुब्ध विदेशी वारों से,
ये तो कुंदन सम चमक उठेगा,
जैसे चमके स्वर्ण प्रहारों से।
जैसे चमके स्वर्ण प्रहारों से।।
