STORYMIRROR

Kusum Joshi

Inspirational

4  

Kusum Joshi

Inspirational

मैं ख़ुद का साथ ख़ुद से ही निभाता हूँ

मैं ख़ुद का साथ ख़ुद से ही निभाता हूँ

2 mins
412

कभी खुद से ही रूठा खुद को ही मनाता हूँ,

खुद से नाराज़ भी हूँ खुद ही मान जाता हूँ,

चाहिए कौन ऐसा साथी मुझे अब जग में,

मैं खुद का साथ खुद से ही निभाता हूँ।


ढूंढता था मैं कभी साथ तेरा ही हर पल,

तुझमें ही देखता था आज मेरा और कल,

वो तस्वीर तुझमें अब ना देख पाता हूँ,

अपनी तस्वीर मैं अब खुद से ही बनाता हूँ।


कभी रोता था तुझको पास अपने पाने को,

तेरे होने से भूल जाता था जमाने को,

तू ही तू था की तुझमें था मेरा संसार सारा,

अब तो संसार अपना मन में अपने पाता हूँ।


ये ना अब सोचना की तुझसे मैं ख़फ़ा हूँ कुछ,

ऐसा कुछ दरमियाँ भी अब कहाँ बचा है कुछ,

तेरे घर से गुजरते मोड़ से मुड़ आया हूँ,

वो तेरी यादें भी उस मोड़ छोड़ आया हूँ।


अब तेरी याद है ना किस्से ना फ़साने हैं,

सच है ये ज़िन्दगी ना इसमें अब बहाने हैं,

सारे बंधन मैं जग से आज तोड़ आया हूँ,

नया रिश्ता मैं एक खुद से जोड़ लाया हूँ।


ऐ ज़िन्दगी ढूँढने तुझको मैं भटकता था दर,

तेरी ही खोज में चलता था दिनों दिन और प्रहर,

साथ तेरा ही तो चाहता था सज़दे में सदा,

पर अब खुद के आगे खुद ही सर झुकाता हूँ।


राहों में दूर तक अकेला चलता जाता हूँ,

पर खुद को अब तन्हा तो नहीं पाता हूँ,

मिल गया है साथ मुझे खुद का ही ऐसा,

कि खुद का साथ खुद से ही निभाता हूँ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational