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Kusum Joshi

Romance

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Kusum Joshi

Romance

तुम्हारी खामोशी

तुम्हारी खामोशी

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तुमने कभी कहा नहीं,

जहां हूं मैं कि तुम वहीं,

क्यों रहे खामोश तुम,

क्यों कभी कहा नहीं


मैं इंतज़ार में ही थी

बेकरार मैं ही थी,

बिन खता के भी सदा,

गुनाहगार मैं ही थी


तुमने चुने थे रास्ते,

मैं रह गई थी भीड़ में

साथ तुमको मिल गए,

मैं थी अकेली नीड़ में,


वो साथ जो बिताए थे,

लम्हे जो बनाए थे,

याद कुछ किया नहीं,

क्यों कभी कहा नहीं


मैं रुकी थी राह में,

तुम आओगे इस चाह में,

तब ना तुम आ पाए थे,

फिर आज क्यों आवाज दी,


गिरते गिरते कई दफा,

अब जाके मेरी जिंदगी,

जो फंस चुकी थी भंवर में,

अब किनारे आ लगी,


पर आज फिर आवाज़ से,

फिर से कदम की थाप से,

जिंदगी हिल सी गई,

तूफान में मिल सी गई


क्यों आज फिर आवाज़ दी,

क्यों राह मेरी थाम ली,

आज फिर वो क्यों कहा,

जो पहले कभी कहा नहीं

तुमने कभी......



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