मैं प्रकृति हूँ
मैं प्रकृति हूँ
प्रकृति हूँ प्रकृति मैं,
सजूंगी तेरे प्रयास से,
तू ही मुझे अब मुक्त करेगा,
प्रदूषण के अभिशाप से,
ऐ मनुज इस जग में तुझको,
क्या नहीं मैंने दिया,
मगर मैं तो मिट रही,
तेरे किए आघात से,
मैंने दिए फल फूल तुझको,
जल जंगल बयार भी,
मैंने ही वर्षा भी दी,
ये खेत और खलिहान भी,
मैंने ही तुझको दे दिए,
ये जीव कितने रंग लिए,
मगर मेरा आँचल सिकुड़ता,
तेरे किए हर कार्य से,
मैंने तुझे जीवन दिया,
हर ज़रूरत को पूरा किया,
नदिया भी मैंने ही दी,
और समुद्र भी मैंने दिया,
मैंने तुझे पर्वत दिए,
जो भर दिए स्वर्णखान से,
मगर तू है खेलता,
मेरे दिए वरदान से,
अगर मैं जो मिट गयी,
जीवन ये तेरा न रहेगा,
जिस विकास पर तू झूमता,
पर्याय उसका क्या रहेगा,
मुझसे ही तेरी खुशियाँ हैं,
मुझसे ही तेरा आसरा,
पर आसरा ये मिट रहा,
तेरे किए व्यवहार से,
वक्त रहते तू सम्भल जा,
मनुज! काम कर सद्भाव से,
विकास में ना विनाश कर दे,
काम कर सद्भाव से,
भविष्य के सुख के लिए,
विकास को सतत् कर दे,
बच पाऊँगी तब ही तो मैं भी,
तेरे किए प्रयास से।