STORYMIRROR

Kusum Joshi

Classics

4  

Kusum Joshi

Classics

अश्वत्थामा

अश्वत्थामा

1 min
575

वरदान मृत्यु पर था या,

अमरत्व का अभिशाप था,

पुण्य का वो कोई फल या,

पाप का परिणाम था,


जीव तो अमर नहीं,

नाम अमर होता है,

पर वो ऐसा मनुज था,

बिन नाम जो अमर हुआ,


अमरता के बाद भी,

पहचान कहीं खो गयी,

निकृष्ट वो गति हुई,

की मृत्यु भी ना मिल सकी,


कर्म वो चुने थे उसने,

आत्म की मलिन किया,

धारा भंवर में ऐसा फंसा कि,

अंत भी ना मिल सका,


महान गुरु का तनय,

वो योद्धा महान था,

पर मित्रता के चक्र में फंस,

भूला अपना ज्ञान था,


धर्म के उस युद्ध में,

वो खड़ा अधर्म पक्ष में,

दिया साथ पाप का,

जब कि धर्म रोया था समक्ष में,


अभिमन्यु का जो वध किया,

वो छल ही कितना क्रूर था,

पर उसका तो लक्ष्य आगे,

उत्तरा का भ्रूण था,


अजन्मे पर वार कर,

बदलने चला था सृष्टि को,

पर कौन मनुज जान सका है,

जगत में अपनी वृष्टि को,


कर्त्ता नहीं कारक सभी हैं,

उस दिव्यता के सामने,

कौन नष्ट कर सकेगा,

जिस सृष्टि को बनाया श्याम ने,


पर ज्ञान धर्म छोड़ उसने,

हाथ पाप थामा था,

अमर होकर भी जो मर गया,

वो नाम अश्वत्थामा था।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics