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Kusum Joshi

Romance

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Kusum Joshi

Romance

तुम जीवन की परिभाषा हो

तुम जीवन की परिभाषा हो

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जीवन की एक नयी नयी परिभाषा लगते हो,

कभी ना हो जो खत्म ऐसी एक आशा लगते हो,

निर्मल निश्छल आँखों में सच्चाई रहती है,

उस सच्चाई के सागर में मोती कोई तराशा लगते हो,


कभी लगते हो तुम वो परछाई जो अंधियारे में साथ रहे,

कभी रात अमावस में चमकता कोई तारा लगते हो,

अँधेरे कमरे में एक जलते दीपक की लौ जैसे,

चातक के लिए आसमान में बहती जल की धारा लगते हो,


पथ भूल गए राही को जैसे मिलती नयी दिशा है,

नई दिशा में दिख रही मंज़िल का कोई किनारा लगते हो,

तुम लगते हो वो अविरल झरना जिससे धारा ज्ञान बहे,

थक कर बैठे किसी पथिक को मिला कोई सहारा लगते हो,


बात तुम्हारी आते ही कलम स्वयं चल जाती है,

तुम पर शब्द खुद ही बनते हैं कविताएँ बन जाती हैं,

मेरे जीवन के लम्हों का तुम स्वर्णिम रेखाचित्र बने हो,

मेरी कविताओं-बातों-यादों के सुन्दर अविरल छन्द बने हो,


इस सच्चाई को लेकर ही तुम जीवन में आगे बढ़ना,

दुनिया बने तुम्हारे जैसी मेरी है ये एक तमन्ना,

जीवन के हर मोड़ पर तुम चलना खूब संभलकर,

दुनिया में टीम चमको ऐसे जैसे सूर्य गगन पर।।



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