लिखिए
लिखिए
लिखिए न कि लोगों के बीच वाहवाही पाने को,
बस लिखिए कुछ पल स्वयं के साथ बिताने को।
लिखिए न कि अपनी कविता से प्रशंसा पाने को,
बस लिखिए चेहरे पर लोगों के मुस्कान लाने को।
लिखिए न कि महान कवियों में अपनी छवि बनाएं आप,
बस लिखिए कि दुनिया की भीड़ में कहीं गुम न हो जाएं आप।
लिखिए न कि अपने विचारों पर घमंड करने को,
बस लिखिए कि कुछ बात हो कविता में लोगों के पसंद करने को।
लिखिए न कि प्रशंसा के उजालों में चमके आप,
बस लिखिए कि अंधेरों में कहीं अकेले न भटके आप।
लिखिए न कि सबसे आगे निकल जाएं कदम,
बस लिखिए ताकि समय के आगे ये न जाएं थम।
लिखिए न कि लोगों की नज़रों में आप कमाल बन जाएं,
बस लिखिए ताकि हर किसी के लिए आप एक मिसाल बन जाएं।
लिखिए न कि आप पंक्तियाँ महफ़िल में ज़ोर से पढ़ी जाएं,
बस लिखिए ताकि ये हर कमज़ोर आवाज़ को मज़बूत बनाएं।
लिखिए न कि थोड़ी प्रसिद्धि पर हवा से बातें करे आप,
बस लिखिए कि संकटों में ज़मीन पर डट कर खड़े रहें आप।
लिखिए न कि संसार में मशहूर हो लें आप,
बस लिखिए ताकि इस स्वार्थी संसार में अपनी वास्तविकता न खो दें आप।
लिखिए न कि सुन्दर शब्दों से कविता मनमोहक हो जाए,
बस लिखिए ताकि आपके बेतरतीब विचार किसी कागज़ पर उतर जाए।
लिखिए न कि संसार की भांति स्वयं के हित में सोचते हैं आप,
बस लिखिए क्यूंकि इन पंक्तियों में एक नयी सोच को पनपते देखते हैं आप।
लिखिए न कि धर्मों की दीवार और मज़बूत बनाने को,
बस लिखिए धर्म की राजनीती को जड़ से मिटाने को।
लिखिए न कि आपके भीतर जन्म ले ले अहम,
बस लिखिए क्यूंकि लिखने से हर दर्द हो जाएगा कम।
लिखिए जबतक शोर न मचा दें आपके विचार,
लिखिए जबतक गिर न जाए नकारात्मक सोच की दीवार।