चंचल चपल सबलामत्स्यंगना
चंचल चपल सबलामत्स्यंगना
चंचल, चपला, सबला, सौंदर्य अद्भुत
सागर की गहराई में बसी मतवाली,
अपनी स्वर्णिम झलक दिखलाती,
है यह मत्स्यगंना जल प्रदेश की रानी।
रहस्यमयी सम्मिश्रण है जलपरी,
नारी और मछली के शरीर का,
है उपरी आधा भाग नारी का,
आधा निचला भाग है मछली का।
चंचल चपला है मत्स्य की भाँति,
झट से उपर आती गहरे समुद्र से,
पलक झपकते ही लगा छलांग,
उतर जाती जल की तलहटी में।
चेहरा हैं परिपूर्ण मासूमियत से,
झील सी नेत्रों से टपकता अथाह प्रेम,
अपार सौंदर्य जलपरी का, चल आँखों
की राह आ बस जाता हृदय में।
भयंकर तूफ़ानों को सागर के,
झेल जाती बन सबला नारी,
नहीं घबराती भीषण लहरों से भी,
निकल आती बाहर लिये मधुर मुस्कान।
है काल्पनिक दुनिया की,
सर्वश्रेष्ठ कृति मत्स्यंगना,
जीवन सागर में आए तूफ़ान,
से बिन घबराये उबरने का
देती यह प्रेरणात्मक संदेश।
उपर नीचे होती समुद्र की लहरें,
हैं प्रतीक जीवन क़े टेढ़े-मेढ़े रास्तों का,
देती संदेश मानव को मत्स्यंगनाा
रख हौंसला, कर सामना डट कर,
विपरीत परिस्थितियों का।
सहन शक्ति है नारी में,
सागर समान गहरी,
उठती जब लहरें जीवन में
जटिल समस्याओं की,
तैर मछली समान सरलता से,
निकल आती उनसे बाहर,
मत्स्यंगना शायद है इसलिए,
संतुलित मिश्रण नारी व मत्स्य का।।