मस्त मेघ
मस्त मेघ
छाया आकाश में श्याम वर्ण मेघ,
घूम रहा इठलाता मस्ती से चहूँ ओर,
खेलता खेल लुका छिपी का रवि संग,
भर लेता आदित्य को अंक में अपने,
रंग जाती धरा स्याह रंग में,
छोड़ रवि को उड़ जाता आगे कहीं,
फैल जाता उजियारा फिर से पृथ्वी पर,
कहीं बरसा देता जल प्यार से तपती धरती पर,
लहलहा उठती प्रकृति धन्यवाद स्वरूप,
झूमने लगते पक्षी टिप-टिप करती बूंदों की लय पर,
फैला पंख मोर लगता नाचने रिझाने मोरनी को,
झूम उठता वातावरण मेघ मल्हार के मधुर संगीत से,
करते छप-छपा-छप बालक वर्षा के जल में,
मेघ फ़व्वारे से बरसता जल करता आमंत्रित लेने स्नान,
सिहर जाते बालक वृद्ध कड़कती बिजली जब झांकती
हुई बादलों के भीतर से,
हो जाता प्रफुल्लित मन मयूर दर्शन से सतरंगी इन्द्रधनुष के।
झरने लगता नीर नेत्रों से विरहनी के देख मस्त मेघ,
पीड़ा हो जाती असहनीय प्रियतम से विलगता की,
लगाती गुहार मेघ से पहुँचाने संदेश पी को बन मेघदूत,
पड़ जाते झूले पेड़ों पर सावन में, बढ़ाती पेंग सखियाँ,
विस्मरित कर कुछ देर दर्द पिया वियोग का, सज संवर कर,
गाती गीत डूबे श्रंगार रस में पी मिलन के, नाचती ढोलक की थाप पर,
करती अठखेलियाँ, लेती स्वाद पकवान और घेवर का।
परन्तु हो उठता क्रोधित जब मेघ देख होते अत्याचार धरती माँ पर,
करने लगता तांडव धर रूप रौद्र, सिखाने सबक मानवजाति को,
बरसता ऐसा तब कि कर देता जल थल एक,
बह जातीं क्षण में बड़ी-बड़ी इमारतें, कारें, कीमती सामान,
बन जाते ग्रास मानव, पशु भी उफनती नदियों के।
जुड़ जाते हाथ तब मनुष्य के करते प्रार्थना शांति की मेघ से,
उड़ चल देते मेघ मस्त फिर आते-आते आश्विन,
विस्मरण हो जाता मानव को समस्त विध्वंस आते आते ग्रीष्म,
दृष्टि फिर हो बेचैन लगी रहती आकाश में प्रतीक्षा में काले-काले मेघों की।।
