STORYMIRROR

Neerja Sharma

Abstract

4  

Neerja Sharma

Abstract

कच्चे आम

कच्चे आम

1 min
250


गर्मियों के दिन,नानी का गाँव

आमों के बाग ,आमों की भरमार।

आज के चित्र ने सब याद दिला दिया

फिर से बचपन में लौटा दिया।


उन दिनों की बात थी अलग

कच्चे पक्के आम सब थे पसंद

बस टपके का मिले यही मन

जिसके हाथ लगे करे वो चट।


सारी दोपहर बाग में बिताते

कच्चे आम भी आराम से चबा जाते

बस थोड़ा सा नमक लगाते 

और चटकारे लेकर खा जाते।


बैग भरकर घर भी लाते

मीठी चटनी और पन्ना भी पाते 

एक नहीं कई न्योड़े बन जाते

खूब मजे से खाना खाते।


 कच्चा आम अचार के काम आता 

उबाल कर पन्नाह बन जाता

 टूटे आमों की लौंजी बन जाती 

ज्यादा टूटे से चटनी बन जाती।


आमचूर की बागड़िया तैयार हो जाती

चूल्हे में भूनकर पीथवा बन जाता 

एक आम कई रूप में परोसा जाता

खाने का स्वाद और बढ़ जाता ।


कच्चे आम की बातें आज 

मेरे गाँव की यह सौगात

अब तो मुँह में पानी आया

लो जी पन्नाह आपको चखाया।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract