कुदरत
कुदरत
कुदरत ने हमेशा सबके जीवन का किया श्रृंगार ,
प्रेम वेदना और संवेदना से सींचा दामन विश्वास का,
सूरज निकल फिर ढल जाता रयन गये दिन आ जाता,
सृजन हमारे हाथों में है, ध्वज लहराओ तुम जोश का,
धरा को चारों ओर से घेरा प्रकृति ने रंग बिखेरा है,
नई नई योजनाओं से ना बिगुल बजाओ विनाश का,
सतरंगी ख्वाबों के रंग को चुनना अब तुम्हारे हाथों में है,
एक पल आगे सोच कर देखो रंग होगा तुम्हारे एहसास का,
नई पीढ़ी आज नितांत अकेले ही स्वयं में सिमट रही है,
संस्कारों का जामा पहनकर सृजन करो नई आशाओं का,
आज विरानों ने ऐसा घेरा जैसे खामोशियाँ चितकारती हैं,
मूल रूप सौंदर्य सुधारो तब वक्त आएगा फिर खुशियों का,
पक्षियों की चहक उपवन की महक हमेशा याद दिलाते हैं,
खामोशियों में कुछ ना रखा चहचहाहट ही रंग है जिंदगी का,
दादुर मोर पपीहा कोयल इसकी शोभा से जग बौराया है,
महकेगा जीवन यदि हम सब प्रयोग करें इन उपमाओं का,
चंचल लहरें नित अपनी राहे स्वयं टटोलती सागर से मिलती,
आने वाली पीढ़ी इनसे सीखें सुख अपनी मंजिल को पाने का,
नील गगन के अनंत की ओर उड़कर जाते पंछी को निहारो,
भावना के पंख लिए दूर उड़ चलो महल सजाओ तुम सपनों का,
मशीनों के कोलाहल को छोड़ कुदरत के संगीत को पहचानो,
निर्माण करो सहानुभूति सहयोग अरमानों और आशाओं का I
