आओ मिलकर नए सिरे से अपना घर सजाते हैं। आओ मिलकर नए सिरे से अपना घर सजाते हैं।
लौट गयी हर लहर साहिल पे आकर, समझ गई अपनी हदों के इशारे जैसे, लौट गयी हर लहर साहिल पे आकर, समझ गई अपनी हदों के इशारे जैसे,
आनंद ही आनंद मिला है इस बरगद की छांवों में। आनंद ही आनंद मिला है इस बरगद की छांवों में।
क्या तुम्हें मेरी कमी बिलकुल नहीं खलती है ! क्या तुम्हें मेरी कमी बिलकुल नहीं खलती है !
जब भी देखते हैं उन्हें, कहते हैं, क्या यही यार है, और पूछते रहते हैं दिल से, क्या यही जब भी देखते हैं उन्हें, कहते हैं, क्या यही यार है, और पूछते रहते हैं दिल से, ...
हमने की थी आसमान को धरती बनाने की कल्पना, नांदा हैं वो लोग, जो हमारी कामयाबियों से। हमने की थी आसमान को धरती बनाने की कल्पना, नांदा हैं वो लोग, जो हमारी कामयाबि...