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Vikas Sharma Daksh

Others

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Vikas Sharma Daksh

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बहता दरिया

बहता दरिया

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बहते दरिया के यह दो किनारे जैसे,

फासले पे तन्हा खड़े हैं, हमारे जैसे,


गूंज सुनो तो इन टकराती मौज़ों की, 

इक फुगाँ मेरी रूह को पुकारे जैसे,


लौट गयी हर लहर साहिल पे आकर,

समझ गई अपनी हदों के इशारे जैसे,


खुश्क गर्मी हो या बारिश का उफान,

बेलिहाज कुदरत मौसम गुज़ारे जैसे,


हाशिये पे जो समझता था वज़ूद कभी, 

बीच मझधार से दिखे उसे सहारे जैसे,


क़रीब होकर भी वस्ल की उम्मीद नहीं,

डूबने वाले को हुए होंगे वो नज़ारे जैसे,


'दक्ष' नए पुल तामीर करो, तलाश करो,

खामोश तमाशबीन ना रहे तुम्हारे जैसे। 



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