संभल जा ... ऐ...दिल मेरे !
संभल जा ... ऐ...दिल मेरे !
क्यों हुआ है इस कदर परेशां,
ढूंढता फिरता है यहाँ किसके निशाँ,
इक अरसे से है हुआ तू वीराँ,
संभल जा ... ऐ...दिल मेरे !
कब तलक यूँ ही ठंडी आहें भरेगा,
पुराने ज़ख्मों को यूँ ताज़ा रखेगा,
दर्द का एहसास ना कभी मरेगा,
संभल जा ... ऐ...दिल मेरे !
बर्बादियों के सफर में उदासियाँ हज़ार,
राहे-इश्क़ में ख्यालों-ख्वाबों का खुमार,
कब तलक तू यूँ ही रहेगा सबसे बेज़ार,
संभल जा ... ऐ...दिल मेरे !
फना होती हर शह, इस जहाँ,
मारा-मारा फिरेगा तू कहाँ,
जीने के लिए ढूंढ मक़सद यहाँ,
संभल जा ... ऐ...दिल मेरे !
तन्हा ही तय करना होगा ज़िन्दगी का सफर,
ना कोई रहबर यहाँ और ना कोई हमसफ़र,
खुद से ढूंढ तन्हाइयों में अपनी डगर,
संभल जा ... ऐ...दिल मेरे !