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Vikas Sharma Daksh

Classics

3  

Vikas Sharma Daksh

Classics

एक नयी सुबह

एक नयी सुबह

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एक नयी सुबह...

क्षितिज पर उगते सूरज का नारंगी रंग,

नीले आकाश को छुटपुट सफ़ेद बादल करते भंग,

खेतों की हरियाली और पीली सरसों का संग,


एक नयी सुबह...

बीते दिन की त्रास,

आने वाले कल की आस,

वर्तमान की चलती सांस,


एक नयी सुबह...

बसंती फूलों से है हर चमन खिला-खिला,

दूर कहीं अजान और आरती का स्वर मिला-जुला,

जाती सर्दी और आती गर्मी के बीच यह मौसम नपा-तुला,


एक नयी सुबह...

चहचहाते पक्षियों का मधुर गीत,

बहती नदिया का पार्श्व संगीत,

प्रकृति का समूह-गान होता प्रतीत,


एक नयी सुबह...

गगन में उड़ते पक्षियों का टोला,

धरती ने जैसे बदला हो चोला,

नूतनता का हो कपाट खोला,


एक नयी सुबह...

मन में है नयी उमंग,

तन में इक नयी तरंग,

मानो आकाश में उडती पतंग,


एक नयी सुबह...

नया दिन, नया विश्वास,

नई अभिलाषा, नई प्यास,

और नया कुछ करने का प्रयास,


एक नयी सुबह...

निरंतरता में सहसा बदलती चाल,

हौसला फिर शुरू करने का हर हाल,

जीवन को देती नित नया सुर ताल,


एक नयी सुबह...


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