श्रीमद्भागवत -२१६ ; गौओं और गोपों को दावानल से बचाना
श्रीमद्भागवत -२१६ ; गौओं और गोपों को दावानल से बचाना
परीक्षित, जब वो ग्वालबाल जो
खेल कूद में लगे हुए थे
गहन वन में घुस गयीं गोयें सब
हरी हरी घास के लोभ में।
ग्वालवालों और कृष्ण ने जब देखा
कोई पता ठिकाना ना पशुओं का
बहुत व्याकुल हो ढूंढ़ने लगे
अन्त में तब उन्होंने देखा।
कि एक सरकंडे के वन में
डकरा रहीं हैं गोयें उनकी
चेस्टा करने लगे लौटने की उनको
थक बहुत गए थे वे सभी।
भूख प्यास भी लगी थी उनको
कृष्ण भी गौओं को पुकारने लगे
गोयें हर्षित हो रम्भाने लगीं
नाम की ध्वनि सुनकर अपनी।
भगवान् उनको पुकार ही रहे थे कि
अकस्मात दावाग्नि जल उठी वन में
हवा भी जोर से चल रही थी
सहायता कर रही उसको बढ़न
े में।
ग्वालों, गोपों ने जब देखा कि
दावानल आ रहा उनकी और ये
अत्यंत भयभीत हो गए सब
कृष्ण, बलराम को पुकारने लगे।
कहें, हम शरणागत तुम्हारे
दावानल से बचा लीजिये हमें
भगवान् ने कहा, तुम डरो मत
बचन सुनकर उनके दीनता भरे।
कहें वो, आँखें बंद कर लो सारे
भगवान् की आज्ञा सुनकर सभी ने
अपनी अपनी आँखें मूँद लीं
कृष्ण आग को मुँह से पी गए।
घोर संकट से छुड़ा लिया उन्हें
और उन्होंने आँखें खोलीं तो
दावानल से बचा देख अपने को
बहुत ही विस्मित हुए वो।
उन्होंने तब समझा ये कि
कृष्ण कोई हैं बड़े देवता
व्रज में लौटने पर उन्होंने
सभी को सुनाई ये कथा।