।। अमृत महोत्सव ।।
।। अमृत महोत्सव ।।
हो तिरंगा हर छत पर जब
नील गगन उल्लासित हो
हक संस्थानों पर हो बराबर
सबकी सीमाएं परिभाषित हों ।।
जो साधन हों वो सबके हों
ना बड़ा रहे ना छोटा कोई
कोई दूध को बालक ना तरसे
ना भूखी हो कोई माँ सोई ।।
धन धान्य भरे हों हर घर में
अन्नों से हों अन्नागार भरे
मन से सब ही निर्भीक बनें
सेवा से ही सब संताप टरे ।।
हाथ बढ़े तो देश की खातिर
कंठ से हो बस जय जयकार
जो समवेत स्वरों में बोल उठें
हो अरि दल में बस हाहाकार।।
राणा सा एक एक बालक हो
लक्ष्मी सी हो एक एक बाला
हों देशप्रेम के धागे में जुड़े सब
ज्यों पुष्प गुत्थी कोई माला ।।
फिर सोने की चिड़िया बन कर
भारत में क्षीर की सरिता हो
मिलो तक वन सघन रहे फैले
पृथ्वी का हर पग हरिता हो ।।
हर बचपन हर नौनिहाल पर
ममता करुणा की चादर हो
हो वो बड़ा या अपने से छोटा
हर जन का यहाँ पर आदर हो ।।
मंदिर मस्जिद या फिर गिरिजा
कोई गुरु का अब द्वारा हो
सर सजदे में झुके सबके आगे
सब में अब विश्वास हमारा हो ।।
ऐसा जिस दिन हो राष्ट्र ये मेरा
तब अमृत महोत्सव का मानी है
उस पल तक जितने ये पर्व रहे
बस कोशिश ही कि निशानी है ।।
इस अमृत को देश में लाने में
जाने कितने हैं अभी मंथन बाकी
शिव सा है कौन जो ये गरल पिये
वो नरसिंह निडर वो बेबाकी ।।
आजाद हुए हैं गोरों से हम बस
बेड़ियाँ कितनी न अभी हैं टूटी
सीना ही तो चौड़ा हुआ है बस
अभी कितनी कुंठाएं जो ना टूटी ।।
स्वाधीन हवा में जीते हैं पर
हैं पराधीन अब भी मन से
एक मिट्टी से यूँ बने सभी हैं
क्यों रहते हरदम अनबन से।।
आजादी एक तारीख नहीं है
एक ज़ज्बा है जो जीना है
जिम्मेदारी का ये वो अमृत है
हम सब को जो नित पीना है।।
आओ कहें आजाद हैं हम
आओ कहें आबाद हैं हम
है अब नहीं अवसाद कोई
हर उम्मीद में उन्माद हैं हम।।
इस अमृत वर्ष का आगमन
बस झकझोर दे यूँ जोर से
हिल उठें अब चारों दिशाएँ
माँ भारती के जय शोर से ।।
ये तिरंगा ही हो पगड़ी मेरी
तिरंगा ही हो बस मेरा कफन
माँ भारती को जीवन समर्पित
हर भय हुआ है अब दफन ।।
अब से हो हर घर तिरंगा
अब से रहे हर सर तिरंगा
मेरा ईमान बस अब ये ही
लो शपथ हो हर मन तिरंगा ।।
चल उठो अब बढ़ चलो सब
अमृत कलश ले ये रंग बिरंगा
माँ भारती है नित आशीष देती
जो भाल पर लहराया तिरंगा
माँ भारती का ये ध्वज तिरंगा ।।
माँ भारती का ये ध्वज तिरंगा ।।
इस आजादी के अमृत महोत्सव की वेला पर आप सभी को
सादर नमन.