आत्मा हो स्वच्छंद
आत्मा हो स्वच्छंद
प्रभु नाम सुमिरन करो,
पाओ सकल सुख धाम !
इसी नाम से मिटें सब,
लोभ, मोह, मद, काम !
भगवन को जपो नित,
हियें भरहु परम आनंद !
ज्यों ज्यों प्रभु के नाम जपें,
त्यों - त्यों आत्मा हो स्वच्दछंद !
हरी नाम ही जग सार है ,
बाकी जग है छलावा शेष !
काम क्रोध मद छोड़ के,
कर ले रे मन, सुमिरन विशेष !