विरह भरी रातें
विरह भरी रातें


बरसात की उन विरह भरी रातों में,
जब आसमान बादलों से घिरा होता है,
तुम्हारी यादें बनकर छोटी छोटी बूँदें,
मेरे दिल की धरती पर गिरा करती हैं।
तेरे बिना ये भीगी भीगी उदास शामें,
जैसे सूखी रेत पर पानी की तड़प,
हर बूंद में बसा है सिर्फ तेरा नाम,
और हर आह में छुपा है तेरा दर्द।
वो पहली बारिश की खुशबू जैसे
तेरी महकी साँसों की तरह लगती है,
भीगे हुए सुनसान लम्बे रास्तों पर,
तेरे कदमों के निशान ढूँढा करती हूँ।
बिजलियों की चकमक चमक में,
तेरे हँसी की एक झलक मिलती है,
पर ये आकाश भी तो जानता है,
कि तू पास नहीं, दूर कहीं खो गया है।
तेरे बिना ये बरसात का मौसम भी,
जैसे गीत बिना संगी
त की तरह है ,
हर बूँद जो गिरती है रात का पहर है ,
वो मेरे मन की पीड़ा कहती दहर है।
ये बरसातें, ये हवाएं, ये लताएं
तेरी यादों का साथ हवा लाती हैं,
पर तुम तो उन बूँदों की तरह हो,
जो धरती को छूते ही खो जाती हैं।
तेरे बिना ये जीवन भर खराब
जैसे प्याला बिना है ये शराब,
तेरे लौट आने की चाह में रहा ,
हर दिन बिताता हूँ उदास उदास ।
अगर तुम हो तो ये बारिशें बरसीं ,
सपनों की तरह प्यारी लगती हैं,
पर तेरे बिना ये मौसम भी प्यारा ,
बस आँखों में आँसू भरती रहतीं हैं।
तू मेरा मेहबूब तू मेरी जान ए जहान है
तुम्हारे बिना, ये बरसातें भी वीरान हैं,
और मेरा धड़कता हुआ मासूम दिल
जैसे सूखे पत्तों की तरह बेजान है।