सुबह का भूला
सुबह का भूला
मैं तो सुबह का भूला,
मुसाफिर हूँ,,
गर शाम ढले लौट आया,
उसमें गलत क्या है,
तक रहां था आस्मां,
जमीं की तरफ नजर भी नहीं,
गर कदम जमीं पर रख दिया,
उसमें गलत क्या है,
मैं तो सुबह का भूला था,
शाम तलक आना हीं था,
कुछ जल्दी आ गया,
उसमें गलत क्या है।