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अशोक जोशी

Abstract Romance

3.1  

अशोक जोशी

Abstract Romance

समर्पण

समर्पण

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205


तुम कभी मुझे अपना, 

कहकर तो देखो,

अपना दिल अपनी जां,

निसार करके तो देखो,

मोम की बनी एक गुड़िया हूँ,

पिघल जाऊँगी,

लहराकर तुम्हारी बांहों, 

में समा जाऊँगी...


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