समर्पण
समर्पण
तुम कभी मुझे अपना,
कहकर तो देखो,
अपना दिल अपनी जां,
निसार करके तो देखो,
मोम की बनी एक गुड़िया हूँ,
पिघल जाऊँगी,
लहराकर तुम्हारी बांहों,
में समा जाऊँगी...
तुम कभी मुझे अपना,
कहकर तो देखो,
अपना दिल अपनी जां,
निसार करके तो देखो,
मोम की बनी एक गुड़िया हूँ,
पिघल जाऊँगी,
लहराकर तुम्हारी बांहों,
में समा जाऊँगी...