बेतरतीबियां
बेतरतीबियां
आहटों की बस्तियों में
सन्नाटे सा है मेरा पता
खत कोई आता नहीं है
है डाकिया भी बेखता ।।
कोशिशें की हमने बहुत
खुद को नुमाया कर सकें
बोल ही निकले थे बस
अहसास सब थे लापता।
इस दानिशी में गुम कहीं
जाने अल्लहड़पन हुआ
जाता रहा न जाने कहां
खुद से खुद का राब्ता।।
जाने कहां से ज़िद थी एक
हो कामिल हर अपने हुनर
राह में सब बढ़ गए
मैं खुद को रहा बस नापता ।।
ये बात दीगर है कि मेरे
अशआर तजुर्बों से भरे
कौन इस दुनिया में अब
बेतरतीबियों को है छापता।।