देता हू़ं
देता हू़ं
खुद को पढ़ता हूँ फिर छोड़ देता हूँ
एक पन्ना जिंदगी का मोड़ देता हूँ।
ख्वाब अभी कई अधूरें हैं जिंदगी के
बना कर रेत का घरौंदा तोड़ देता हूँ।
सफर लम्बा है दूर तलक जाना है
अनजानी राह पर चलना छोड़ देता हूँ।
दिल अकेला ही ढूंढता है अब बस खुद को
नहीं मिलता जब उसे झंझोड़ देता हूँ।
