Untitled
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आसमां के अर्क ने लिखी
अवनि हो गयी
अवनि में
जल धार बनी
जलधार चली
ऊबड़ खाबड़
कल कल छल छल
गाते गीत
जल और माटी
प्रकृति सजीव
प्रकृति को
कोई बांध नहीं सका है
महत्वाकांक्षी औरत की
आंखें लाल
अधर नीले होते
अगर वो अधर चूम लिए जायें तो
उनमें लज्जा नहीं
असंतुष्टि
नजर आएंगी
हर समय औरत को
सही तो नहीं कहा जा सकता
मधुर स्पर्श
कंपकंपी
धीमी-धीमी सांसें
एक जीवन को पूरा कर रही होती
तुम्हारा हाथ पकड़
उस क्षण
औरत चल रही होती
कंकड़ों पर
नंगे पांव
जब पीड़ा
जड़ से सूख जाये
नेह अंकुर दे
तब मिलन की
बारिश से नम
प्रेम तरूं पर
खिले कुछ गुलाब
किंकर के साथ
प्रेम की उपासना
कृष्ण को
आराध्य बना देती
औरत के अधरों से पहले
उसके चरण चूम लेना
उसके चरण
जन्मों का सफर
तय कर के आए हैं
प्रेम के प्यासे
पीड़ाओं से टकराते
मिलने की खुशी
न मिलने का दुख
एक दिन
शून्य हो जाता है।
