मर्द की आवाज़
मर्द की आवाज़
बड़ी अजीब सी होती है ,
मर्द की आवाज़ ,
एक धमक वाली ,
जो अच्छी नहीं लगती।
अच्छी क्यूँ नहीं लगती ?
इसी सवाल का उत्तर खोजने ,
सुनने की कोशिश की ,
मर्द की आवाज़।
एक शोर था उस आवाज़ में ,
एक दंभ भरी हँसी ,
एक चुभन जो घाव देती ,
एक तपन जो दर्द देती है।
एक झगड़ने की भावना हमेशा ,
कुछ सिद्ध करने की कामना हमेशा ,
परमेश्वर जैसा सर्वोपरि खुद को मान ,
एक दमन की लालसा हमेशा।
हाँ .... मैं डरती हूँ अक्सर ,
मर्द की आवाज़ से ,
चाहे वो आवाज़ कहीं से भी आये ,
किसी भी रुप में अपना रंग दिखाये।
पिता , पुत्र , पति और दोस्त ,
ये सब मर्द ही तो हैं ,
इन सबकी आवाज़ सुनने की आदत है ,
बस आदत नहीं गैर मर्द की।
गैर मर्द .... क्या पता कब बहक जाये ?
बिना कुछ कहे उस पर जादू चल जाये ,
बचते रहो हमेशा तभी ,
इस मर्द की आवाज़ से।
बड़ी अजीब सी होती है ,
मर्द की आवाज़ ,
एक धमक वाली ,
जो अच्छी नहीं लगती।।
