अमीर/ग़रीब
अमीर/ग़रीब
संसार दो पाटों में सदा रहा बंटा
इक ओर अमीर है तो दूजा गरीब रहा
इक के आलीशान बंगला गाड़ी है रहने को
दूजे को भोजन भी भरपेट न मिले खाने को
धनवान के पास हैं सब सुख सुविधाएं हैं रहने को
दूजा का खुला आसमां धरती ही है बिस्तर
सदियों से गरीब अमीर में रहा है अतंर।