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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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अमीर/ग़रीब

अमीर/ग़रीब

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संसार दो पाटों में सदा रहा बंटा

इक ओर अमीर है तो दूजा गरीब रहा

इक के आलीशान बंगला गाड़ी है रहने को

दूजे को भोजन भी भरपेट न मिले खाने को

धनवान के पास हैं सब सुख सुविधाएं हैं रहने को

दूजा का खुला आसमां धरती ही है बिस्तर

सदियों से गरीब अमीर में रहा है अतंर।


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