STORYMIRROR

Kavita Sharrma

Abstract

3  

Kavita Sharrma

Abstract

तुम बिन

तुम बिन

1 min
159

 

 तुम्हारे बिना कौन रचता ये दुनिया

 कैसे बनता ये संसार

 ये नदियां कैसे कैसे बहतीं

 कैसे पेड़ों में आती जान

 सूरज और चांद सितारे

 कितने लगते हैं प्यारे

 रात और दिन भी कैसे होते

 जो तुम ये दुनिया न रचते

 इंसान को बुद्धि देकर किया तुमने कितना उपकार

 भाषा का वरदान दिया जो

 कितना आया जीवन में बदलाव

 तुम बिन न बन पाता ये अद्भुत संसार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract