अलबेला सावन!
अलबेला सावन!
बारिश के बूँदों संग मुस्काई ये धरा हो के पावन,
लौट आई इस मतवाली धरती की गुमी हुई सी यौवन।
मीठी की खुशबू में मानो घुल गयी हो गुलकंद,
सारे बेड़ियाँ तोड़ के खिल उठा है शरीर हो के स्वछंद।
सावन के झूलों ने ली मस्ती वाली अंगड़ाई,
मधुर फूलों की खुशबू हर बागानों में है घिर आई।
गरजते बादलों ने छेड़ी मानो ढोल नगाड़े और शहनाई,
नदियों की धारा कर रही हो मानो मधुर संगीत की अगुवाई।
सूरज की किरणें खेल रही है आँख मिचौली ,
इंद्रधनुष संग चमक उठा है हर जीव की जीवनशैली।
पर्वत की चोटी से हट गयी है धूल की झरा,
आसाढ़ की ठंडक ने तोड़ी जेठ माह के गर्मी का पिंजरा।
दोस्तों, सावन की व्याख्या में छिपे हुए हैं अनेकों गुणगान,
कर लो मस्ती अपने परिजनों संग बना के स्वादिष्ट व्यंजनों का पकवान।
