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Alka Nigam

Abstract Inspirational

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Alka Nigam

Abstract Inspirational

मर्यादित स्त्री

मर्यादित स्त्री

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हे स्त्री तुम मर्यादित रहना

उच्चश्रंखल न होना।


धीर नदी के जैसे बहना

निर्झर झरना न होना।


न बनना तुम कोई नदी पहाड़ी

जो कल कल करती बहती।


भाती है हर नर को वो 

जो नदी बाँध में रहती।


वो दूषित हो भी जाये,

पर तुम पवित्र ही रहना।


वो भटक भी जाये पथ तो क्या

पर तुम न कभी भटकना।


उसके पाप के भरे घड़े को

खुद में समाहित तुम करना।


हे स्त्री तुम मर्यादित रहना

उच्चश्रंखल न होना।


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