प्रणय तेरा मोहे प्रणव से लागे
प्रणय तेरा मोहे प्रणव से लागे
प्रणय तेरा मोहे प्रणव सा लागे
प्रत्यंग मोरे वीणा सी बाजे,
सरस सलिल सी साँसें तेरी
देहगंध चंदन सी लागे।
सुरभित हो गईं साँसें मेरी
जब अलकें पलकें अपनी थीं मिली,
स्पर्श तेरे अधरों का मुझको
पूर्ण चन्द्र सा शीतल लागे।
न तृष्णा के आकण्ठ में डूबी
न देह ताप ही मुझे चढ़ा,
वृन्दावनी सारंग राग सा
साँसों का स्पंदन लागे।
निर्झर झरते झरने सा
उन्मुक्त प्रेम तेरा पावन सा,
मुझ प्रेम पुजारन बावरी को
मोहपाश कान्हा के लागे।