स्ट्रेचमार्क्स
स्ट्रेचमार्क्स
ओ पुरुष !
ये जो स्त्रियों के स्ट्रेचमार्क्स तुम्हे भद्दे लगते हैं,
उसके दैहिक सौंदर्य पर पड़े धब्बे लगते हैं,
दरअसल...
ये तुम्हारे उस तथाकथित
पुरुषत्व के पुरुषार्थ की
निशानी हैं,
जिनका तमगा
तुम अपने माथे पर
सजाए फिरते हो।
ये द्योतक है इस बात का
कि मैंने तुम्हारे पुरुषत्व के एक अंश मात्र को
अपनी कोख में स्थान दे
उसे पूर्णत्व प्रदान किया है।
ये द्योतक है कि
मैंने एक नव जीवन को
इस धरा पर लाने का संघर्ष किया है।
प्रतिक्षण,
मेरी कोख में विस्तार लेते
एक
जीवन, और उस जद्दोजहद में
प्रतिपल एक नए निशान को
धारण करती मेरी देह।
खिंचती सी त्वचा में
कभी जलन तो कभी चुभन।
तुम क्या समझोगे...
क्योंकि, तुम तो अपने
उस अपूर्ण से पुरुषार्थ मात्र से ही
खुद को गौरवान्वित
महसूस कर,
पितृसत्तात्मक साम्राज्य का
सिरमौर समझने लगते हो,
जिसकी नींव की पहली ईंट ही
ये स्ट्रेचमार्क्स हैं।
लगते होंगे तुम्हें ये भद्दे
पर मेरे लिए तो ये,
मेरी सम्पूर्णता की निशानी है।
एक अंश मात्र को
सम्पूर्णता प्रदान करने की
कहानी है।