प्रेम का बीज
प्रेम का बीज
प्रेम का बीज...
हमारे अन्तर्मन की माटी में
आस के आवरण से
अपने आप को ढक कर
कहीं बहुत गहरे अंधकार में
दबा रहता है।
पर...
ज्यों ही अनुराग की
राग असावरी अपने संग
विभोर की आशामयी किरण ले
इसके आवरण पर पड़ती है,
इसके अन्तस् से प्रस्फुटित होती है,
एहसास की कपास
और...
इसी एहसास की कपास से
बनते हैं,
मोह के धागे।
जो एक बार किसी से बंध गए
तो बस...
बंध जाते हैं।
कभी किसी की लंबी उमर की
कामना से वट वृक्ष में लिपट जाते हैं,
तो कभी रक्षा सूत्र बन
किसी के हाँथों में मौली बन
सज जाते हैं।
कभी तो ये नज़र भी नहीं आते
पर...
बन जाते हैं रिश्ते
ताउम्र के लिए।